मुझे याद है जब मैं सातवीं कक्षा में थी। तब मेरी क्लास में एक लड़की पढ़ती थी। जिसका नाम “शायद” पुष्पा था। मुझे यह बात तो अच्छी तरह से याद है कि मैं सातवीं में ही पढ़ती थी। पर मुझे उसका नाम ठीक से याद नहीं है इसलिए पुष्पा नाम से पहले शायद शब्द जोड़ रही हूं। पर चलिए मान ही लेते हैं कि उसका नाम पुष्पा था। हां, तो पुष्पा बहुत दूर किसी गांव से स्कूल आया करती थी। पुष्पा की कद-काठी पतली पर उम्र के हिसाब से ठीक-ठाक लंबी थी। उसका रंग सांवला था और उसके दांत कुछ बाहर की तरफ निकले हुए थे।
पुष्पा का नाम मुझे ठीक से याद न होने की वजह यह भी है कि वह क्लास में पीछे बैठा करती थी। क्योंकि पढ़ाई में उसका बहुत ज्यादा रुझान लगता भी नहीं था। और यह तो स्कूलों की पुरानी परंपरा है की अच्छे नंबर लाने वाले बच्चे आपको आगे की सीटों पर जबकि कम नंबर वाले बच्चे पीछे की तरफ बैठे हुए मिलेंगे। हो सकता है कि आजकल चीजे बदल गई हो पर तब यही होता था स्कूलों में। ख़ैर मैं कक्षा में सबसे आगे बैठने वाले बच्चों में से थी। इसलिए मेरी दोस्ती पुष्पा से नहीं थी। उस वक्त पर एक और बात बच्चों के दिमाग में होती थी। और वो बात थी कि “होशियार लोगों से ही दोस्ती करनी चाहिए”। इसी मानसिकता के चलते आगे के बच्चों से मेरी ठीक-ठाक दोस्ती थी। हां एक और खास बात ,आगे बैठने वाले बच्चे बस आगे बैठने वाले बच्चों से ही दोस्ती करते थे। लेकिन आगे बैठने वाले बच्चों से ठीक-ठाक मतलब और बातचीत पूरी क्लास बना कर रखती थी। क्योंकि आगे वाले बच्चों का नोट बुक्स में काम पूरा रहता था।
ख़ैर एक ही कक्षा में बैठे और फिर भी दो समूहों में बटे बच्चों में से मैं बस एक लड़की की बात कर रही हूं। जिसका नाम “शायद” पुष्पा ही था और वह दूसरे समूह यानी पीछे बैठने वाले बच्चों में से थी। वह मुझे याद क्यों रह गई है यह तो मैं भी पूरी तरह से नहीं जानती पर कुछ हद तक जरूर बता सकती हूं।
पुष्पा बहुत दूर किसी गांव में रहती थी। “शायद” उसके घर की आर्थिक स्थिति भी कोई बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी। एक दिन पुष्पा स्कूल में एक खास तरह के फल लाई थी। वह कुछ छोटे, गोल और हरे-पीले रंग के थे। और उसने मेरे पास आकर जब वह छोटे, हरे – पीले फल मुझे दिए। तो मैंने पूछा कि “यह क्या है? ” उसने कहा कि यह जंगली बेर है। तो दोस्तों मैंने जिंदगी में पहली बार जंगली बेर सातवीं कक्षा में देखें, सुने,और चखे। पर इससे भी ताजुब की बात यह थी कि उसने आगे बैठने वाले बच्चों में से सिर्फ मुझे बेर दिए थे। मैं तो उससे ज्यादा बात भी क्या जबकि उसकी ओर ध्यान भी नहीं देती थी। थोड़ी देर यह सब सोचने के बाद मैंने सोचा कि शायद इसे मुझ से कोई नोटबुक लेनी है और ऐसा सोचकर फिर मैने कुछ नहीं सोचा। लेकिन अगले दिन वह फिर बेर लाई, और उसके अगले दिन भी और फिर कई दिनों तक। इतने दिनों में उसने मुझे हर रोज बेर दिए। और इस सबके चलते मैं जो उससे मतलब नहीं रखा करती थी। उसकी जगह अब उस पर मेरा ध्यान जाने लगा। हम कोई बहुत करीबी दोस्त तो नहीं बने। न ही बातें करने लगे। पर हां अब मैं उसे नजरअंदाज़ तो कम से कम नहीं करती थी।

एक बार स्कूल में चेकिंग होने लगी। क्लास मॉनिटर ने टीचर के कहने पर जब सबका बैग चेक किया। तो पुष्पा के बैग से एक डायरी निकली। जो कि मेरे ख़्याल से कोई गुनाह नहीं है। पर पता नहीं क्यों उस डायरी को लेकर राय का पहाड़ बनाया गया। जिसके लिए उसकी डायरी छीन ली गई । क्योंकि उस डायरी के अंदर एक प्रेम कहानी लिखी हुई थी। जो कि “शायद” पुष्पा ने लिखी थी। और “शायद” उसे लिखने का शौक था। मेरा पुष्पा के बारे में कुछ भी बोलने से पहले “शायद” लगाना इस बात का प्रमाण है कि मेरी उससे ना कभी कोई खास बातचीत हुई और ना ही मैं उसके बारे मे कुछ खास जानती हूं।
मैं बस इतना जान पाई उसके बारे में कि बचपने में भी
हम आगे बैठने वाले समूह के जो बच्चे केवल मतलब पूरा करने वाले से मतलब रखकर , दिमाग से सोच परख कर चलते थे। वही दूसरे समूह की पुष्पा थी जो कम से कम किसी मतलब के लिए मुझे बेर नहीं देती थी। जो पीछे बैठती जरूर थी मगर आगे वाले बच्चों को दूसरे समूह की तरह नहीं आंकती थी। वह पीछे बैठती थी मगर उसका दिमाग सीमाओं में बंद नहीं था। उसके नजरिए में समूह वाली बात लगभग एक व्यंग्य समान थी। और वो हमेशा मुस्कुराती भी रहती थी। यह जनवरी का वक्त था जब वह जंगली बेर लाया करती थी ।जो की कच्चे होते थे। क्योंकि जंगली बेरो के पकने का सही समय फरवरी- मार्च का होता है। और फरवरी में स्कूलों में वार्षिक परीक्षाएं भी होती हैं। पुष्पा किसी भी परीक्षा को देने स्कूल नहीं आई। और वह फिर कभी स्कूल नहीं आई।
कुछ बच्चों से सुनने में आया की उसकी शादी कर दी गई। और कुछ ने कहा कि उसकी आर्थिक स्थिति की वजह से वह परीक्षा ही नहीं दे पाई थी और न ही आगे पढ़ पाएगी। अब सच क्या है यह तो भगवान जाने।
पर हां हर साल जब भी सर्दियों में जंगली बेर देखती हूं। तो उस लड़की का ख़्याल ज़हन में हमेशा आ जाता है। और वह ‘जंगली बेर वाली लड़की “शायद” पुष्पा’ है ।